राजस्थान के गावं-ढाणी से लेकर शहर-महानगरों तक में मुस्लिम समुदाय द्वारा सामाजिक या फिर निजी तौर पर अनगिनत तालिमी इदारे संचालित हैं लेकिन अफसोस कि उनमें से एक भी इदारा ऐसा मयारी नही बन पाया है जिसमें प्रवेश पाने के लिये स्टूडेंट्स को मिशनरी व महाजन बिरादरी के इदारों की तरह मामूली सा भी मशक्कत करनी पड़े। जबकि इसके विपरीत हमारे अन्य वतन भाइयों के प्रदेश भर में ऐसे तालिमी इदारों की भरमार है जहां स्टूडेंट्स के भारी मशक्कत करने के बावजूद भी कभी कभार प्रवेश नही मिल पाता है।मुस्लिम तालिमी इदारों का उक्त मयार तक नहीं पहुंचने के अनेक कारण समाजी लोग अपनी कमी को छूपाने के लिये गिनाते हुये अपना रोना सालों से रोते आ रहे हैं, लेकिन असल कारण एक खास आवरण से बाहर निकल कर बदलाव लाने की दृढ इच्छा शक्ति की कमी व अहसासे कमतरी का शिकार समुदाय का होना भी बडा कारण माना सकता है। राजस्थान के बोहरा समाज के गलियाकोट में मौजूद शैक्षणिक संस्थान, मारवाड़ मुस्लिम सोसायटी द्वारा जोधपुर में संचालित शैक्षणिक संस्थान, सीकर में ऐक्सीलैंस फाऊंडेशन द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थान के अलावा दो चार अन्य संस्थान प्रदेश भर में इस तरफ दौड़ लगाने की तरफ हो सकते हैं एवं जो कुछ हद तक शैक्षणिक मैदान में अपना जरा वजूद रखते है वरना अधिकतम तालिमी इदारों की हालत तो ऐसी बन गई है कि जहां पर मुस्लिम होशियार बच्चों के साथ साथ अन्य वतन भाइयों के बच्चे प्रवेश पाने की सोचते तक नहीँ हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के अनेक इदारों को कायम हुये अस्सी से नब्बे साल तक होने को भी आ रहे हैं। एक खास बात यह भी देखने में आई कि समुदाय के कम पढे लिखे यानि तालीम के रोजाना बदलते तेवरों से पूरी तरह अनजान लोग तालिमी इदारों की प्रबंध समिति के जिम्मेदार बने हुये हैं जो मरते दम तक प्रबंध समिति को छोड़ना नही चाहते हैं। उक्त ओहदा छोड़ना वो अपनी तौहीन मानते हैं।एक तरफ आज के हालात में मुस्लिम समुदाय के तालीमी इदारे स्टूडेंट्स के प्रवेश के लिये तरसते रहते है, दूसरी तरफ ईसाई मिशनरीज के तालिमी इदारों मे प्रवेश पाना हर स्टूडेंट्स का आज भी सपना बना हुआ है। इसके अलावा महाजन व जैन समुदाय के तालिमी इदारों में प्रवेश पाने के लिये काफी मशक्कत करने के बावजूद प्रवेश न मिलने पर मजबूत सिफारिश की तलाश करनीं होती है। राजस्थान के मारवाड़ व शेखावाटी जनपद में जाट समुदाय के युवकों ने शैक्षणिक इदारों का जगह जगह एक जाल बिछाकर कम समय में बहुत कुछ पा लिया है। कोचिंग के मामले में जाट समुदाय ने कोटा को पछाड़कर सीकर को शिक्षा का हब बना दिया है। सीकर में 1994 में श्रवण चौधरी नामक एक जाट युवक ने दो कमरों मे सीएलसी (CLC) नामक कोचिंग संस्थान शुरू किया था वो आज भारत का प्रमुख कोचिंग संस्थान बन चुका है। श्रवण चौधरी के बाद काफी जाट युवक इस मैदान में आकर कोचिंग संस्थान कायम करके अपना डंका बजा रहे हैं। सीकर में श्रवण चौधरी व रणजीत शेषमा नामक दो जाट युवकों की कड़ी मेहनत से कम समय में विशाल शैक्षणिक संस्थान कायम करने की उनकी योग्यता की जितनी तारीफ की जाये वो कम होगी। सिविल सेवा की तैयारी करवाने के लिये सूदरासन डीडवाना के रहने वाले दौलत खाॅ नामक मुस्लिम युवक ने जयपुर में दौलतखान संस्थान कायम करके जरुर अपना एक मुकाम बनाया है। उनके अलावा प्रदेश में अन्य मुस्लिम इस मैदान में दूर दूर तक नजर नही आ रहे हैं।
कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय को जरा शैक्षणिक मैदान की तरफ जरुर सोचना चाहिये कि वो आज भी उसी पुराने ढरे पर चलते हुये भाप के इंजन के सहारे अपने युवकों की शैक्षणिक रेल चलाना चाहते हैं या फिर कम से कम लेटेस्ट इलेक्ट्रिक इंजन के सहारे अपने युवकों वाली फास्ट रेल चलाना चाहते हैं। अगर इस विषय पर फैसला अब समय रहते नही किया तो आगे चलकर वो शैक्षणिक मैदान में इतने पिछड़ जायेंगे जहां से फिर उठना भी काफी मुश्किल होगा।