सैय्यद मुजीबुद्दीन, यवतमाल (महाराष्ट्र), NIT;
महाराष्ट्र के यवतमाल ज़िले में गत वर्ष कम बारिश होने की वजह से पूरे ज़िले में जलसंकट की भीषण स्थिति पैदा हो गई है। ज़िले के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर जल संकट देखने में आ रहा है, जिसका ज़्यादा असर पुसद तहसील में देखा जा रहा है।
पुसद से 17 किलोमीटर की दूरी वाले असोली गांव में सरकार ने 5 करोड 62 लाख रूपियों की लागत से बनाया गया विशाल जल शुद्धि एवं जल आपूर्ति केंद्र पिछले कई सालों से बंद पड़ा है, जिसके चलते 8 से 10 गांव के ग्रामवासियों को पानी के लिए दरबदर भटकना पड़ रहा है। आसपास के कुएं, बोर, नदी, नाले सूख चुके हैं, साथ ही असोली गांव में स्थित गौशाला भी जल संकट के चलते प्रभावित हो रही है।पुसद तहसील के असोली स्थित जल शुद्धि केंद्र बंद होने के चलते हर्षी, गौळ, असोली, दहिवड, पालूवाडी, वेणी, खडक़दरी, लोनदरी, शिवाजीनगर, शिलोना गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इन कस्बों में पानी नहीं होने के चलते गांव वालों को कोसों दूर दूर तक जाकर रातों में जाग जाग कर पानी की तलाश करना पड़ रहा है।इन गांवों कस्बे से बाहर जाकर पढ़ने वाले छात्र जब शाम को घर वापस आते है तो घर में पानी नहीं रहने की वजह से उन्हें रातों में पानी की खोज में घूमना पड़ता है। लगभाग रात के 4 बजे तक पानी भरने के बाद फिर सुबह अपने कॉलेज स्कूल के लिए तैयार रहना पड़ता है।इन तकलीफों के चलते छात्राओं की पढ़ाई पर भी भारी असर पड़ रहा है।
जब यहां इंसानों के लिए पीने के पानी का ये हाल बना हुआ है तो मवेशियों का हाल कैसा होगा आप समझ ही सकते हैं। इस असोली गांव में गोपाल कृष्ण गौशाला है, जिसमें करीब 150 मवेशी हैं। इस गौशाला में पानी की किल्लत के चलते आए दिन मवेशियों की मृत हो रही है।गौशाला के संचालक पांडे का कहना है कि उन्हें एक दिन आड़ मवेशियों के लिए सात सौ (700) रुपये का पानी खरीदना पड़ रहा है और सरकार की ओर से उन्हें अब तक कोई अनुदान प्राप्त नही हुआ है।
23000 हज़ार की जन संख्या वाले इन गांव में कुछ साल पहले सरकार ने आसपास के कस्बों में वाटर सप्लाई करने के लिए जल पूर्ति योजना के तहत असोली गांव में 5 करोड़ 62 लाख की लागत से एक विशाल जल शुद्धि केंद्र बनाया था। जिसमें नज़दीकी वेणी गांव के डैम्प से असोली गांव तक पाईप लाइन फिट करके असोली स्थित जल शुद्धि केंद्र से एतराफ़ के 8 से 10 कस्बों में जल पूर्ति करनी थी। इस जल शुद्धि केंद्र को बनाने की ज़िम्मेदारी महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण ने निभाई और जनवरी 2015 से अक्टोबर 2016 तक यानी 22 महीने तक इस जल शुद्धि केंद्र के ज़रीए महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण ने ही एतराफ़ के कस्बों में जल पूर्ति किया। जबकि बनाये गए इस जल शुद्धि केंद्र को ज़िला परिषद या ग्राम पंचायतों की लोकल बॉडी ने जीवन प्राधिकरण के पास से खुद के ताबे में लेकर योजना के मुताबिक दिए गए गांव और कस्बों में जल पूर्ति करने की असल ज़िम्मेदारी लेनी थी लेकिन जल शुद्धि केंद्र का काम मुकम्मिल होने के बाद महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण के पास से किसीने भी इस योजना को ताबे में ना लेने के चलते ये योजना पूरी तरह बंद हो गई।
हमारे NIT संवाददाता सैय्यद मुजीबुद्दीन ने इस मामले में महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण के सब डिविज़न इंजीनियर एस.एम.दारवेकर से बात की तो उन्होंने बताया के नियम के तहत इस योजना को चलाने की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायत या ज़िला परिषद की है। इस योजना को चलाने के लिए सालाना 46 लाख की ज़रूरत पड़ती है जिसके चलते आज कोई भी इस योजना को ताबे में लेकर चलाने की ज़िम्मेदारी नहीं ले रहा है। आगे दारवेकर इंजीनियर ने ये भी बताया के इस मामले में उन्होंने पुसद के आमदार मनोहरराव नाईक और खासदार भावना ताई गवळी से भी कई बार बातचीत की लेकिन आज तक किसी ने भी इस समस्या पर गंभीरता से दखल लेकर इस समस्या का हल नही निकाला जिसके चलते आखिर कार ये योजना पूरी तरहा बंद पड गई।
अब सवाल यह उठता है कि इस योजना को चलाना ही नही था तो करोडों रुपये खर्च करके यह जल शुद्धि केंद्र बनाया ही क्यों है?
आपने एक कहावत सुनी होगी “दो मुल्ला में मुर्गी मुर्दार” यह कहावत आज पूरी तरह से यहाँ फिट होती दिखाई दे रही है। इस योजना को ग्राम पंचायत और ना ही ज़िला परिषद ही चलाने को तैयार नही है जिसके कारण आज यह जल शुद्धीकरण केंद्र बंद होकर सिर्फ एक नुमाइश केंद्र बना पड़ा है।
इन तमाम समस्याओं के चलते गांव वालों ने सरकार से गुहार लगाई है कि उनकी परेशानियों की ओर ध्यान देकर सभी गांव में हो रही पानी की समस्या को जल्द से जल्द हल क्या जाए और बंद पड़े इस जल सुद्धि केंद्र को फिर से शुरू की जाए।
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